वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह को महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है जो कि न्याय के देवता और कर्मों के कारक ग्रह हैं। यह अनुशासन, धैर्य एवं कड़ी मेहनत आदि को नियंत्रित करते हैं और व्यक्ति को कर्मों के अनुसार पुरस्कार और दंड देते हैं। राशि चक्र में शनि देव मकर और कुंभ राशि के अधिपति देव हैं जिन्हें सबसे मंद गति से चलने के लिए जाना जाता है। इन्हें एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करने में ढाई साल का समय लगता है इसलिए इनके गोचर का प्रभाव लंबे समय तक बना रहता है और जीवन में बड़े परिवर्तन लेकर आता है। शनि ग्रह समस्याओं, चुनौतियों और देरी का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन फिर भी अपने लक्ष्यों के प्रति दृढ़ रहने वाले जातकों को समृद्धि, स्थिरता और सफलता का आशीर्वाद देते हैं। शनि देव को ही साढ़े साती (7.5 वर्ष) और ढैय्या (2.5 वर्ष) का जिम्मेदार माना जाता है जिससे लोग भयभीत रहते हैं क्योंकि यह व्यक्ति के जीवन में कठिन दौर, आर्थिक समस्याएं और भावनात्मक उतार-चढ़ाव लेकर आती है। हालांकि, यह अवधि आपको जीवन के महत्वपूर्ण सबक सिखाती है और आपको अपने व्यक्तित्व में सुधार लेकर आने और आध्यात्मिक प्रगति के मार्ग पर लेकर जाती है। शनि देव की पूजा, शनि मंत्रों का जाप और इनके मूल्यों का जीवन में पालन करने से आपको शनि ग्रह के नकारात्मक प्रभावों को शांत करने में सहायता मिलती है।
वैदिक ज्योतिष में केतु ग्रह को छाया ग्रह माना गया है जो अपने आध्यात्मिक प्रभाव और कर्म संबंधित महत्व के लिए जाने जाते हैं। अन्य ग्रहों की तरह, केतु का कोई स्वरूप नहीं है, लेकिन फिर भी इन्हें ज्योतिष में अत्यधिक शक्ति प्राप्त है। पूर्व जन्म के कर्मों, वैराग्य और मोक्ष के कारक ग्रह के रूप में केतु देव का संबंध रहस्य, अंतर्ज्ञान और अध्यात्म से है। यह हमारे मन को नियंत्रित करते हुए व्यक्ति को स्वयं के बारे में जानने के लिए प्रेरित करते हैं। हालांकि, केतु को पापी ग्रह माना जाता है और यह भ्रम, अचानक से हानि, स्वास्थ्य समस्याएं और भौतिक इच्छाओं से दूरी आदि के लिए जाने जाते हैं। केतु की स्थिति का प्रभाव प्रत्येक राशि और भाव में अलग-अलग होता है और ऐसे में, यह आपके करियर, प्रेम संबंध और मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं। उपाय के रूप में, केतु ग्रह शांति पूजा, केतु बीज मंत्र और कंबल, काले तिल जैसी वस्तुओं का दान करके आप केतु ग्रह के नकारात्मक प्रभावों को शांत कर सकते हैं।
श्रापित दोष निवारण पूजा को संपन्न करने के लिए शनि ग्रह के 23,000 मंत्रों और केतु देव के 17000 मंत्रों का जाप करना चाहिए। इस पूजा के अंतर्गत पुण्याहवाचन, कलश पूजा, प्रत्येक ग्रह के लिए दशम यज्ञ, नवग्रह हवन और हनुमान चालीसा को भी किया जाता है। किसी व्यक्ति की कुंडली से शनि और केतु के अशुभ प्रभावों को समाप्त करने के लिए श्रापित दोष निवारण पूजा एक प्रभावी उपाय है। अधिकतम लाभ की प्राप्ति के लिए, इस पूजा को शनिवार के दिन शुभ मुहूर्त एवं नक्षत्र में वैदिक रीति-रिवाज़ों से करना चाहिए। पूजा को शुभ मुहूर्त में संपन्न करने के लिए, यह पूजा 07 पंडितों द्वारा 05 या 06 घंटे तक की जाती है।
आपको ऑनलाइन श्रापित दोष निवारण पूजा से जुड़ी सारी जानकारी प्रदान की जाएगी जिसे अनुभवी पंडित द्वारा संपन्न किया जाएगा। पंडित जी ही पूजा के लिए शुभ मुहूर्त का चयन करेंगे और यह एक समय पर केवल एक ही पूजा करेंगे ताकि पूरे ध्यान और समर्पण के साथ पूजा की जा सके। श्रापित दोष निवारण पूजा को शुरू करने से पहले पंडित जी या आचार्य जी आपसे आपके और आपके परिवार की जानकारी प्राप्त करेंगे। इसके बाद, पूजा को मन में स्पष्ट उद्देश्य लेकर शुरू किया जाएगा। इस पूजा के आरंभ से ठीक पहले पंडित जी आपको कॉल करके आपसे संकल्प करवाएंगे जो पूजा की शुरुआत को दर्शाता है। श्रापित दोष निवारण पूजा के दौरान, अगर आप घर या मंदिर में हैं, तो आप शांत स्थान पर बैठकर मंत्रों का जाप कर सकते हैं। “ॐ शं शनैश्चराय नमः” (23,000 बार) “ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:” (17,000 बार) पूजा संपन्न होने के बाद, पूजा की सकारात्मक ऊर्जा को आप तक पहुँचाने के लिए पंडित जी आपको दोबारा कॉल करेंगे। इस प्रक्रिया को “श्रेया दान” या “संकल्प पूर्ति” के नाम से जाना जाता है जो कि पूजा के संपन्न होने को दर्शाती है।
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